अंतर्मन - मानव का वो साथी है जो उसको हमेशा अहसास दिलाता है की मानव भगवान का अंश है सच्चे अर्थो में हमेशा साथ खड़ा रहने वाला दोस्त अंतर्मन ही तो है जो हमेशा हमे कुछ भी गलत करने से रोकता है किसी भी काम से पहले मन कहता है रुक, सोच ले और हर गलत कदम पे वो अहसास कराता है कि भगवान देख रहा है लेकिन, आदमी अंतर्मन की आवाज को अनसुना कर आगे बढ़ता है; सभी गलत काम करता है, लोगो को ठगता है और फिर कहता है कि अच्छा हुआ जो ये काम कर लिया, कितना पैसा कमा लिया (जबकि उस समय भी अंतर्मन कहीं डर रहा होता है)

जब यह योजना बनी की अंग्रेजी ब्लॉग में रोसेन लगातार कुछ लिख रही है और मैं पंचतत्व में हिंदी ब्लॉग की कमी को पूरा करूँ तो मुझे लगा कि अंतर्मन की आवाज से बेहतर और क्या होगा लिखने को - जिसे हम सब सामने नहीं आने देना चाहते कोशिश है एक छोटी सी अंतर्मन की दशा बताने की - अगर लगे कि मैं उस आवाज को सुन पाया हूँ तो स्वागत करना; अन्यथा, एक दोस्त की तरह मुझसे इस बात की मंत्रणा करना कि क्यों मैं चाह कर भी अंतर्मन की आवाज़ सुन नहीं पाया

Monday, October 24, 2011

एक नया विचार


क्यूँ न इस दीवाली एक नया विचार करे | दोस्तों को मिले तो बिना गिफ्ट के मिले | ये भी क्या परम्पराएँ हम शुरू कर बैठे की तुम मेरे यहाँ आना तो गिफट लेते आना और फिर मैं तेरे यहाँ जाऊंगा तो गिफ्ट लेता जाऊंगा | बड़ी बड़ी कंपनियां चांदी काट रही है और मध्यम वर्ग डिब्बों के रेट उलट पलट रहा है की किस दोस्त को क्या देना है, कौन सा रिश्तेदार कितनी हैसियत का है | कोई दोस्त महंगा गिफ्ट देता है तो उसको गिफ्ट भी महंग...ा ही वापिस करना होगा और कोई हल्का दोस्त तो गिफ्ट भी हल्का दे दो | ऐसा माहौल बनाया जा रहा है , टीवी और सारा मीडिया आपको ये बताने पर लगा है की कितना कितना सामान कहाँ कहाँ बेचा जा रहा है | ये खबरे नहीं है दोस्तों ये आपका दिमाग घुमाने की साजिश है की आपको लगे सारी दुनिया लगी है सामान खरीदने में आप रह गए पीछे | इस साल इस विचार पर काम करे, दीवाली को दीवाला न बनाए

दोस्तों , इस साल दोस्ती को सेलिब्रेट करे|

बदलो समाज को , लाओ नए विचार और शुरुआत करो अगर कुछ अच्छा लगे |

दीवाली की शुभकामनाये

Sunday, August 21, 2011

हौसला


आज उड़ान के बच्चो ने अपनी पहली रंगारंग प्रस्तुति दी |(उड़ान कूड़ा बीनने वाले बच्चो को पढाने की मुहीम है ) उन बच्चो ने जो कभी सोच भी नहीं सकते थे की मंच से कुछ करना कितना अलग होता है | आधे से ज्यादा लोग जो देखने आये थे यह उनके जीवन का पहला कार्यक्रम था और जो कर रहे थे उनके जीवन का भी पहला डांस कार्यक्रम | आज मेरा मन बहुत भावुक हो रहा था, कई बार पानी आँखों तक चला आया | प्रस्तुति से पहले मेरे मन में कुछ पंक्तियाँ आई उनको आपके साथ बाँटता हूँ | दोस्तों समाज अपना है इसको बदलने का ख्वाब देखते हो तो काम करना ही होगा , सपने कुछ नहीं बदलते अगर उनपर काम न किया जाए | कुछ समय समाज के लिए भी रखो क्यूंकि इससे बड़ी दवा नहीं है खुश रहने और उदासी से बचने की |




रौशनी पर लगा ग्रहण

अब हटने लगा है

किरणों से बनती छाया

समझ आने लगी है

छाज बनाते कुशल हाथ

अब अक्षर बनाने लगे है

और कूड़ा बीनती आँखे

कागज़ में शब्दों को देखने लगी है

अंगूठे के अनाकर्षक निशान

तिरछी रेखाओं में बदल गए है

बालो के उलझे धुल भरे गुचछे

चमकदार बाल बन गए हैं

कुछ खाली खाली आँखे

रौशनी से चमकने लगी हैं

कुछ बंद रहने वाले होंठ

कविता बुदबुदाने लगे हैं

मेरे बच्चो ने उड़ना नहीं सीखा है अभी

लेकिन उनके पंख दिखने लगे हैं

Thursday, July 14, 2011

कांग्रेस का बम विस्फोट

मुंबई बम विस्फोट के बाद के बयान राजनीती की बढती नंगई की और इशारा करते हैं | ये बयान आम आदमी को ये बताने के लिए काफी हैं, की हम सभी लोग उग्रवादियों के रहमो करम पर जिंदा हैं | हम जिंदा है तो सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो हमें मार पाने लायक बम नहीं बना पा रहे | मुझे ये समझ नहीं आता की क्यूँ हमारा तंत्र जो किसी भी चीज़ को संभालना तो जानता ही नहीं उसके बाद बेतुके बयान क्यूँ देता है | क्यूँ हम हर बार बेतुके बयानों के बाद अवसाद ग्रस्त प्रतिक्रियाएं करते है जबकी हमें पता है की दिग्विजय सिंह एवं माननीय युवराज अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं |


अब मुझे यह भी लगने लगा है की मेरा ही मानसिक संतुलन ठीक नहीं क्यूंकि मैं चाह कर भी, हज़ार प्रयत्न करने के बाद भी वैसे सोच नहीं पाता जबकि मुझे लगता है की अगर किसी आदमी को समझना चाहता हूँ तो उसकी तरह सोचने का प्रयत्न करु | मैं अब बहुत सी बाते समझ नहीं पाता शायद मैं अवसाद से ग्रस्त हूँ
जैसे मुझे समझ नहीं आता की कोई इतना बेशर्म कैसे हो सकता है जो ये कह दे की हम पकिस्तान से अछे हैं जहां रोज धमाके होते हैं या फिर यही की धमाके रोके ही नहीं जा सकते जैसे अमेरिका के बारे में हमे पता ही नहीं और वहाँ भी रोज बम फटते हो |


मुझे और भी बाते समझ नहीं आती जैसे गंगा को बचाने को चलाई जाने वाली मुहीम उन लोगो को क्यूँ नहीं सोप दी जाती जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इसी के लिए लगा दी | हर शहर में छोटे छोटे ग्रुप या जलपुरुष राजेंद्र सिंघजी जैसे लोगो को क्यूँ नहीं उन कार्यों के लिए नियुक्त किया जाता जो अकेले लगे हैं बरसो से |
मुझे ये भी समझ नहीं आता की क्यूँ हम उग्रवादियों को अपने देश में घुसने देते हैं और फिर उनसे लड़ते हैं ये तो उसी तरह हो गया की घर के बाहर से चूहों को अंदर आने दो और फिर उन्हें घर में खोजते रहो तब तक जब तक वो कोई नुक्सान ना कर दे | क्यूँ नहीं बोर्डर की सुरक्षा में उनमे से आधे लोग और लगा दिए जाते जिनको देश के अंदर सुरक्षा करनी है | कितना अजीब है घर के हर कमरे में ताला लगा के रखो और मुख्य द्वार खुला रहने दो |
मुझे ये भी समझ नहीं आता की तरह तरह के भ्रष्ट्राचार में फसे नेता कैसे हर बार चुनाव जीत कर फिर से राज करने लगते हैं, कैसे भ्रष्ट्राचार के आरोप में नेता के जेल जाते समय लोग उनके लिए नारे लगाते हैं की संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ है | मुझे बहुत सी बाते समझ नहीं आती |
मुझे समझ नहीं आता की सड़क पर हुई हर मौत के लिए कौन से लोग सरकारी बसों को तोड़ते हैं और फिर मुआवजा लेकर आराम से घर जाकर सोते हैं |
मुझे समझ नहीं आता की कौन से लोग शहर की सबसे व्यस्त सडको पर जागरण करने के लिए इकठ्ठा हो जाते हैं और कौन से लोग उन्हें इसकी परमिशन दे देते हैं |
अच्छा है बहुत से लोग अवसाद ग्रस्त नहीं हैं, अच्छा है बहुत से लोगो को पुरानी बाते याद नहीं रहती| अच्छा है कल से मुंबई फिर से चलने लगेगी | अच्छा है देश के बहुत से लोगो की संवेदनाए मर गयी है | अच्छा है बहुत से लोग यही सोचते हैं की सवा अरब लोगो में सों पचास का मर जाना क्या मायने रखता है |

Tuesday, June 28, 2011

सरकारों को बताओ पब्लिक क्या कर सकती है

कुछ लोग कहते है देश बर्बाद हो रहा है कब सरकार हमारे दिए टैक्स का हिसाब देगी | क्या जरूरत है सरकार से हिसाब मांगने की | इसका बहुत ही साधारण सा तरीका मैं बताता हूँ की आपका काम भी हो जाए और सरकार से हिसाब भी न माँगना पड़े | अपने आसपास एक ऐसी संस्था ढूंढे जिसको सेक्शन 80G में दान प्राप्त करने पर छूट प्राप्त हो | उस संस्था से बात करे और उसको दान देकर अपने आसपास के वो काम कराये जो सरकार को करने थे लेकिन सरकार नहीं कर रही | आपको सरकार को टैक्स नहीं देना पड़ा और काम भी हो गया | अगर सरकारे निठल्ली हो गयी है , अगर सरकारों से अगले तीन साल हिसाब मांगना मुश्किल है तो आगे बढ़ो और स्वयं कार्य को करने की प्रतिज्ञा लो और दिखा दो की अगर सरकारे हमें अच्छा रहन सहन नही दे सकती तो हम खुद सक्षम है उसको सुधारने के लिए | सरकार से हिसाब समय आने पर माँगा जायेगा लेकिन हम लोग अपने द्वारा दिए जाने वाले टैक्स को बचा कर उससे अपने काम करा सकते हैं

सरकारों को दिखा दो की कितना दम है हम लोगो में | हम सिर्फ अहिंसा से ही सरकारों को हिला सकते हैं फिर सिर्फ कोसते रहकर नर्क में क्यूँ रहे | अच्छा जीवन जीने के लिए इतनी महनत कर सकते हैं तो उसको और बेहतर बनाने के लिए थोडा सा जोर और लगाए तो देश की तस्वीर बदल सकते हैं |

Sunday, June 5, 2011

चलो इस्तेमाल हो जाए


घबराहट होती है देश की हालत पर , आम आदमी बस इस्तेमाल होने के लिए बना है क्या ? कभी अन्ना, कभी बाबा रामदेव और कभी दबंग लोग, सरकारे तो कर ही रही है इस्तेमाल आदमी को | किसी खबर का नहीं पता , क्या सच है क्या झूठ , कौन से सौदे पर्दों के पीछे किये जा रहे हैं | कौन से खेल चल रहे हैं चारों तरफ | मेरे एक मित्र के साथ अब से कुछ वर्षों पहले सड़क पर लूट पाट होते होते बची थी उस समय जब वो गांव की सड़क पर खुद को बचाने के लिए भाग रहा था और चिल्ला रहा था बचाओ बचाओ तब वो लुटेरे भी चिल्ला रहे थे बचाओ बचाओ जिससे लोगो को यह भ्रम हो जाए की कौन लुटने वाला है और कौन लूटने वाला है यही खेल तो चल रहा है देश में | देश के सब भ्रष्ट्र लोग भी लाइन में खड़े हैं की भ्रष्ट्राचार खतम हो क्यूंकि वो जानते हैं अगर कुछ हुआ तो कानून की लकीरे भी वही बनायेंगे | आम आदमी .. नहीं शायद आम भ्रष्ट्र आदमी मजे ले रहे हैं खबरों का , बहस में अपना समय गुजार रहे हैं , नारे लगा रहे हैं समाज परिवर्तन के और खराश के साथ उनके अर्थो को सड़क पर थूक दे रहे हैं | आओ जश्न मनाये कभी न सुधरने के लिए किये गए आधे अधूरे प्रयत्नों का | किये गए प्रयत्नों में किये गए खर्चो से भी जेबे भर लेने का | सरकारे भी लगी है आदमी को मुर्ख बनाने में , वो सरकारे जो हमने बनायी है देश चलाने को वही लाखो करोड के घपलों में लिप्त है | अपने बच्चो की रोटी को भी नोच लेने का समय है यह , उनके हिस्से का पानी पी जाने का समय है ये , उनके हिस्से की हवा में जहर घोलने का समय है ये | फेसबुक पर बैठकर प्रतिक्रिया देने का समय है ये | काम से ज्यादा बाते करने का समय है ये | किसी दुसरे के नहीं अपने बच्चो की लाशो पे कफ़न डालने को पैसा कमाने का समय है ये |

सुना था आदमी और जानवर में बस एक फर्क है की आदमी के पास बहुत से गुण हैं और जानवरों के पास बस एक गुण वो भी प्रचुरता में | तभी तो कुछ लोग शेर की तरह वीर हैं , हिरन की तरह चपल है , बाज के जैसी आँख हैं , नाग की तरह जहरीले हैं | इन्ही गुणों ने आदमी को आदमी बनाया सिर्फ आदमी में वो ताकत है जो उसे देवता बना दे और चाहे तो जानवर बना दे | कितना अजीब है हम देवता बन सकने की क्षमता होते हुए जानवर बनने को उतावले हो रहे हैं | आज जिला जज महोदय ने एक कार्यक्रम में कहा हर वृक्ष में एक बिंदु होता है जहां से हर वृक्ष का एक हिस्सा अंधेरो में उतर जाता है और एक हिस्सा आसमान की तरफ देखने लगता है आदमी में भी यही काबिलियत है अगर बस वो ऊपर देखने लगे तो देव बन जाए और नीचे देखने लगे तो असीम अंधेरो में उतर जाए | देव बनने की सभी क्षमताये हम में हैं बस ऊपर देखने की जरूरत है |

Sunday, May 8, 2011

मुझे मरने में मेरी मदद करे


मैं एक मरणासन्न नदी हूँ , इतिहास में दर्ज होने को तैयार एक रोग ग्रस्त नदी, एक ऐसी नदी जिस पर समाज की अपार श्रध्हा है, एक ऐसी मरती हुई नदी जिसकी समाज पूजा करता है | मैं एक पूजनीय बदनसीब नदी हूँ | मैं गंगा हूँ या मैं यमुना हूँ या मैं कृष्णा, कावेरी और या मैं वो हर पूजनीय नदी हूँ जो मर रही है | जिस पर श्रध्हा भारी हो गयी है इतनी भारी की मेरा दम घुटने लगा है | समाज का पाखंड, धर्म का दिखावा, महान लोगो की निष्क्रियता, साधारण लोगो की चुप्पी और सरकार का भ्रष्टाचार सभी मिल कर मेरा गला घोंट रहे हैं | आज में आपको आमंत्रण देने आई हूँ | अपनी अंतिम यात्रा में आपसे शामिल होने का आग्रह करने, कृपया मेरी यह इच्छा पूरी करे , कृपया झूठे वायदे, मुझे बचाने के दिखावे करना बंद करे | कृपया इतनी नीचता, इतनी बेशर्मी को अपने पर हावी न होने दे की किसी की म्रत्यु से अपनी जेब को भरने का या अपने नाम को होने का फायदा उठाने की कोशिश करे | मुझे शांति के साथ मरने देने के लिए बस आपको दिखावा करना बंद करना है | अगर आपको कभी भी कोई स्नेह मुझ से रहा है कृपया निम्न कार्यों में सहयोग दे जिस से मैं शांति से मर सकू |

१. जितना अत्यधिक पानी आप नहाने, अपनी गाडियों को धोने, सड़क पर छिडकने और नाली में बहाने में सफल होंगे मैं उतनी जल्दी मरने में सफल हो पाऊँगी |

२. आप जितने ज्यादा जहरीले रसायनों का प्रयोग कर सकने में सक्षम हो कृपया उतने ज्यादा का प्रयोग कर मुझे मुक्ति देने का कष्ट करे |

३. आप बाजार से अत्यधिक चीज़े खरीदे चाहे उनकी जरूरत हो या न हो जिस से उनसे होने वाले अत्यधिक प्रदुषण से मैं शीघ्र म्रत्यु को प्राप्त हो सकूँ |

४. आप मेरी पूजा के नाम पर मुझ में खूब से फूल, पत्ते, राख, बची हुई पूजा सामग्री, टूटी हुई कावंड़, टूटी फूटी मूर्तियां आदि डाले जिस से मेरा गला रुंध जाए और मैं शीघ्र इस कलियुग से छुटकारा पा सकूँ |

५. विकास के नाम पर किया जाने वाला दोहन,किनारों पर उगते कंक्रीट के जंगल, रेत और बजरी का अवैध खनन को रोका न जाए तो जल्दी ही मैं वापिस स्वर्गलोक को प्रस्थान कर पाऊँगी

आप सभी धार्मिक लोग हैं , मरते हुए की इच्छा पूरी करने से आप पुण्य के सहभागी होंगे | मैं जीवनदायिनी नदी थी कभी, मैंने बरसो आपके पुरखो को पाला, मेरी हजारो कहानियाँ सुन कर तुमने अपना बचपन गुजारा | मेरी भी तमन्ना थी की मै स्वस्थ रहकर आपके बच्चो की हज़ारो इच्छाए पूरी करती पर अपने पानी में उठती भयंकर बदबू, तैरते हुए कचरे और मर चुकी मछलियों के बिना मुझे जीने की इच्छा नहीं रही | मैं अपने मन को नहीं समझा पाती की कैसे एक इंसान मेरी पूजा करने के बाद मुझी में अपनी चप्पल धो सकता है, अपना मैला मुझ में बहा सकता है | कृपया मुझे मरने में मेरी मदद करे |

Wednesday, April 13, 2011

जनता का भ्रष्टाचार मीटर

आज अचानक यह ख़याल आया कि कितने भ्रष्ट है हम लोग अपनी दिनचर्या में, इस बात को अगर मैं जाचने लगू तो बहुत से पैमाने है हमारे पास चलो देखते हैं हम स्वयं को, जो नेताओ की बुराई करते हैं, नौकरशाहों को कोसते हैं, भ्रस्ट लोगो की जी भरकर बुराई करते हैं, कि हम कितने पानी में हैं

१. अगर आपके घर में अचानक खाना पकाने की गैस खतम हो जाए तब आप क्या करते हैं, ब्लैक में सिलेंडर खरीदते हैं या एजेंसी से बड़ा सिलेंडर जिस पर कोई सब्सिडी नहीं होती वो खरिदते हैं, घर में शादी ब्याह होने पर कौन से सिलेंडर प्रयोग करते हैं


२. आपको अगर सड़क पर गलत गाडी चलाते हुए या कागज़ पूरे न होने पर पुलिस पकड़ ले तब आप अपना चालान कटाते हैं या रिश्वत देकर वही मामले को रफा दफा करते हैं


३. आपको पासपोर्ट बनवाना है और पुलिस की इन्क्वारी होनी है तब आप पुलिस को पैसा देकर काम कराते हैं या बस अपनी रसूख से काम चलाते हैं


४. बच्चे का अड्मिशन कराना है और स्कूल डोनेशन मांग रहा है जो बिलकुल जायाज नहीं है तब आप क्या करते हैं


५. भारत के लगभग पचास प्रतिशत लोग बिजली चोरी करते हैं, आप क्या करते हैं


६. ट्रेन में सीट नहीं मिल पा रही है - जाना जरूरी है , टी टी पैसे मांग रहा है आप क्या सोचते हैं


इसके अलावा भी हज़ारो बाते होंगी शायद जहां हम अपनी सुविधा के हिसाब से सुविधा शुल्क देते हैं और ईमानदार बने रहते हैं नेताओं को, आला अफसरों को खूब कोसते हैं


समय है मनन का की हम खुद को भी अनुशासित करे और खडे हो धर्म् युध्ह में एक अनुशासित सिपाही की तरह भ्रष्टाचार को खतम करे, आइये एक नया भारत बनायें

एक ऐसा भारत जहां लोग अलग ढंग से सोचते हो , जहां एक करोड का घर बना लेने के बाद उसके पास वाली जगह पर घर का गन्दा पानी न भरता हो , जहां मछ्छर के काटने पे लोग उसको मारने की दवाई न ढूढते हो बल्कि ये जानने की कोशिश करते हो की ये मच्छर किन कारन से आ गया | जहां लोग खुद कुछ करते हो और काम न होने का दोष सरकार पर न लगाते हो | एक ऐसा देश जहां भूखे को देखकर भंडारा याद न आता हो बल्कि ये जानने की कोशिश की जाती हो की ये क्यूँ भूखा रह गया | जहां स्कूलों की दशा शहर के मंदिरों से अच्छी हो| आओ नया भारत बनाये जहां के बड़े बुजुर्ग बच्चो को खुश रहने का आशीर्वाद देते हो न की बहुत से पैसे कमा कर बड़ा आदमी बनने का |

Saturday, March 12, 2011

सपनो का बीज


मैं एक बीज हू, जो जन्म देता है वट वृक्षो को, छोटी मोटी लताओ को,जहरीले पौधों को, सबसे खूबसूरत फूलो को और सबसे बदनाम खरपतवार को भी | मैं बीज हू , जो जन्म देता है नए बीजो को| मैं बीज हू, जो जन्म देता है सपनो को | मैं बीज हू जो धरती में पड़ जाए तो जीवन बन जाता हू और दिमाग में पड़ जाए तो सपना| सपना इस दुनिया को बदल देने का, सपना इस दुनिया को खतम कर देने का | जब मैं हिटलर के दिमाग में जाता हू तो कुछ और बनता हू और जब गांधी के दिमाग में तो कुछ और | मैं खतम नहीं होता मैं विस्तृत होता जाता हू | लोग कहते हैं बीज खुद खतम हो जाता है एक वट वृक्ष को जनम देने में लेकिन मैं कहता हू मैं कई गुना बढ़ जाता हू जब मैं फटता हू एक वट वृक्ष में | आज मैं बीज, एक दिमाग की मिटटी में अंकुरित हो रहा हू , उस दिमाग के भीतर छिपी आक्रोश की खाद मुझको शक्ति देगी और समाज की संवेदनहीनता मुझको मिलने वाले जल की तरह मुझसे निकले अंकुर को जीलाए रखेगी तब तक, जब तक उसका आक्रोश खतम होगा या फिर समाज की संवेदनहीनता| इस अंकुर को मैं भी एक वट वृक्ष की तरह पलने दूँगा क्यूंकि चाहता हू, ये भी विस्तृत हो और सबके दिमाग में एक नए अंकुर की तरह फूट पड़े और नए वट वृक्ष बनने तक ये भी पलता रहे|
मैं कितना भी अदना सा होऊं लेकिन कितनी ताकत है मुझमें जब मैं एक दिमाग में पलता हू , एक छोटे सपने की तरह जो कहीं किसी बच्चे के दिमाग में जन्म लेता है और एक नयी कहानी लिख देता है, बिलकुल अद्भुत और आश्चर्य जनक नयी कहानी जो न कभी सुनी गयी न कही गयी| मैं भी सपने बोने निकला हू दुनिया के लाखो इंसानों के दिमाग में, सपने जो भविष्य को रूप देंगे, सपने जो समाज को जिन्दा रखेंगे, सपने जो नए सपनो को मरने नहीं देंगे| क्या तुम भी चाहते हो सपनो को सच करना, उन सपनो को जो जीना सिखाते हैं, उन सपनो को जो उड़ना सिखाते हैं, उन सपनो को जो तुम्हे पंख होने का अहसास कराते हैं तो अपने दिमाग की मिटटी में बस मुझे यानि एक बीज को डाल दो और देखो सपनो की ताकत को|

मैं बीज हू , एक अदना सा बीज, जो दुनिया को बदल सकता है|
मैं एक बीज हू जो खतम नहीं होता किसी तूफ़ान में, किसी तपेडे में, किसी दुःख के सागर में | जब भी वक्त आता है मैं खड़ा हो जाता हू एक नए अंकुर के साथ | मैं मिस्त्र में खिलता हू तो सत्ता उखाड डालता हू, और गमले में खिलता हू तो सबकुछ महका देता हू | मैं बीज हू, मैं दोस्ती करने निकला हू, आओ मेरे साथ अपने सपने सच करने |

Monday, February 14, 2011

ख़ुशी एक मनोदशा


आज बैठे बैठे अचानक इस बात पर बहस हो गयी की मजा क्या है और ख़ुशी , दुःख क्या है बहस का निचोड़ बस एक ही की वाकई एक मनोदशा भर है सब , कोई भी चीज़ किसी को दुखी नहीं कर सकती बस उसको समझाना आना चाहिए खुद को, और आदमी किसी भी चीज़ से खुश नहीं हो सकता अगर वो नहीं जानता खुश होना आइये देखते हैं कैसे बदल जाती हैं चीज़े

पकिस्तान के भूकंप में एक व्यक्ति सिकंदर अपने होशो हवास लगभग खो चूका है क्यूंकि उसके तीन जवान बेटे इस भूकंप की भेट चढ़ गए वो अपनी पत्नी के साथ उनकी म्रत्यु पर विलाप कर रहा है तभी पता चलता है की पड़ोस के इमरान की बीवी भी उसके बच्चो के साथ काल के गाल में समां गयी इस खबर के सदमे के साथ साथ सिकंदर का दुःख थोडा कम हो जाता है वो कहता है ए खुदा मैं खुश नसीब हु की तुने मुझे मेरी पत्नी का साथ बक्शा कुछ नहीं बदला फिर भी मन ने समझा लिया और दुःख थोडा कम हो गया मुमताज़ अपनी कहानी बताते हुए कह रहा है की खुश नसीब हु अपने बच्चो को दफ़नाने को जगह मिल गयी वरना उसके पडोसी तो अपने बच्चो को दफना भी नहीं पाए वो दो लोग जो अपना सब कुछ लुटा बैठे हैं तब भी एक का दुःख दुसरे से कम है बहुत कम क्यूंकि दुःख सुख बस एक मनोदशा भर हैं

हम कितनी बातो से दुखी रहते हैं हमारा मकान नहीं बना तब क्यूँ न सोच ले की दुनिया में कितने लोग बिना छत के रह रहे हैं, जब हम फाईव स्टार होटल में खाना नहीं खा पाते तब क्यूँ नहीं सोचते कितने ही लोग भूखे सो जाते हैं, जब हम छोटी छोटी बिमारी से परेशान होते हैं तब क्यूँ नहीं हम सोच पाते की कितने ही लोग कटे फटे अंगो के साथ बिना इलाज़ के जीने को मजबूर हैं बच्चो को हमने सिर्फ आगे बढ़ने की बाते पढ़ाई हैं उसको सफल होने के आशीर्वाद दिए हैं, उसको नाम शोहरत पैसा सब कुछ पाने के लिए मंदिरों मस्जिदों में माथा टिकाया है शायद हम सब भूल गए हैं की अगर हमने उसे बस खुश रहने का आशीर्वाद दिया होता, उसे सिखाया होता की देख कितने दुःख है दुनिया में और तू कितना खुश नसीब है , उसे सिखाया होता की भगवान् को धन्यवाद कर की उसने तुझे स्वस्थ शरीर दिया , उसे सिखाया होता की ख़ुशी बस मन के भाव में छिपी है किसी चीज़ के होने न होने से उसका कोई मतलब नहीं और उसे सिखाया होता की खुश रहना मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है तो आज की अंधी दौड़ शुरू ही नहीं हो पाती आदमी के जीवन को आरामदायक बनाने वाली चीज़े उसकी जिंदगी का जंजाल न बन जाती आओ एक नयी पहल करे खुश होना सीखे जब कुछ पास न हो तब, जब हर कोई तुमसे आगे निकल जाने के लिए भाग रहा हो तब, जब तुम्हारा बच्चा मिटटी में लथपथ हो घर का फर्श खराब कर दे तब और जब तुम्हारा बेटा कहे मैं जिंदगी में बड़ा आदमी नहीं बन पाया लेकिन बहुत खुश हु तब आओ खुश होना सीखे

Wednesday, January 26, 2011

गणतंत्र दिवस पर जश्ने आज़ादी

आज़ादी के सपने देख सुभाष चंद बोस ने अपने प्राण देश पर न्योछावर कर दिए | भगत सिंह हँसते हँसते फांसी पर झूल गए | हज़ारो लोग अपने घरों को छोड़ बस देश के हो गए | ऐसे लोग जिन्हें न नाम की चाह थी और जिन्हें न मरने पर मिलने वाला मुवावजा चाहिए था | उनकी आजादी को हम जी रहे हैं पूरी बेशर्मी के साथ | शायद जय घोष के बाद की भावनाँए अगर आती भी है तो गला खराश कर तभी बाहर थूकने का जज्बा हम सब में है | सड़क चलती मौत के मुआवजे को लेने को सड़क बंद करना आम है चाहे उस में फंस कोई और मर जाए | पैसे के लिए धोखा देना तो आदत है लेकिन अब तो साधारण बातचीत के लिए भी झूठ बोलना आम है | हमने आज़ादी में जो भी कुछ पाया इतना तो हमने आज तिरेसठ साल बाद सीख ही लिया है की धर्म का कैसे इस्तेमाल हो सकता है, जातियों में लोगो को बाटने के क्या फायदे हो सकते हैं, कैसे नोट देकर वोट लिए जा सकते हैं | आओ आज़ादी का जश्न मनाये भले ही लाखो लोग भूख से मर जा रहे हो, भले ही करोडो लोग अब भी पढ़ना न जानते हो , भले ही हज़ारो लोग बिना किसी अपराध के जेल में सड़ रहे हो | आओ जश्न मनाये कुछ भी कर सकने की आज़ादी का | आओ नारा लगाए इस् दिवस पर झंडा ऊँचा रहे हमारा जिसका अर्थ में बस इतना ही समझता हू की डंडा ऊँचा रहे हमारा कह नहीं सकते इसलिए डंडे में एक कपडा लपेट कहने लगे झंडा ऊँचा रहे हमारा |

हम आजाद भारत के आज़ाद नागरिक
आज़ाद है आज़ादी के तिरेसठ साल बाद
सड़क पर चलते हुए थूकने को,
घर का कूड़ा, पान का पीक
मूंगफली के छिलके, गुटके के पाउच
आज़ादी के साथ सड़क पर डालने को

हम आज़ाद भारत के आज़ाद नागरिक
आज़ाद है एक लिखित संविधान के साथ
सड़क चलते बच्चो, लड़कियों को घूरने को
सड़क के घायलों को मरता हुआ देखने को
घर में बैठ इंसानियत की बात करने को
घर में अपनी बंद मुठ्ठिया लहराने को

हम आजाद भारत के आज़ाद नागरिक
आज़ाद है एक पूरे पुलिस तंत्र के साथ
सड़क पर चलते हुए लुटने पिटने को
कोई भी काम पैसे से करा लेने को
किसी भी फैसले को खरीद लेने को
किसी भी इंसान को कहीं फ़साने को

हम आजाद भारत के आज़ाद नागरिक
आज़ाद है हवा में जोर से नारे लगाने को
झंडा ऊँचा रहे हमारा जोर से चिल्लाने को
ऊँचे ओहोदो के साथ ज्यादा भ्रष्ट होने को
हर काम के लिए सरकार को कोसने को
घर में बेशर्मी के साथ चारपाई पे लेटने को

आओ आज़ादी का जश्न मनाये
हम भी अपने झंडे या शायद डंडे
हवा में जोर शोर से लहराए
नारों में छिपे अर्थो को समझे
झंडा ऊँचा रहे हमारा का असली
अर्थ समझ अपना डंडा ऊँचा रखे

Thursday, January 6, 2011

बाल श्रम


बचपन एक ऐसा समय है जीवन का जो इंसान को हमेशा याद रहता है क्यूंकि वही होता है एक अच्छी याद की तरह, जिसमे बिना किसी फ़िक्र के हम जीते हैं , जहां हमे सोचना नहीं होता की कोई इंसान क्या कहेगा जब हम कोई बेवकूफी करेंगे ,जहां हमे सोचना नहीं होता की रोटी न मिली तो क्या होगा , जहां से हमारी इमारत की पहली ईंट लगाईं जाती है , जहां से हम समाज को एक बेहतर इंसान दे सकते हैं
हमारे घरों पर लाखो बच्चे काम कर रहे हैं , लाखो दुकानों पर बच्चे काम कर रहे हैं लेकिन हमारी आँखों में कोई प्रश्न नहीं उठता की क्यूँ बच्चे काम कर रहे हैं कितना अजीब है सबसे बड़ा प्रश्न और हमारी आँखों को नहीं दीखता , क्या कभी आपने चाय की दूकान पर काम करते बच्चे को एक टोफ़ी दी है, या नए साल पर नए जूते या कभी कहा है चल मैं पढाता हु तुझे अगर नहीं दिए तो एक बार दे कर देखना, कह कर देखना उसकी आँखों की खुशी आपको इतना कुछ देगी जो आप पैसो से नहीं खरीद सकते एक बार कोशिश करे बाल श्रम पर लिखी मेरी यह कुछ लाईने है इस् आशा के साथ की शायद किसी को झकझोर पाए बस एक टोफ़ी देने के लिए, या एक के हाथ में किताब देने के लिए

सड़क पर चलते बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं
साइकिल पर टिफ्फिन लटकाए बच्चे
दूकान में चाय के बर्तन धोते बच्चे
सबके घरों में झाड़ू पोचा करते बच्चे
लाखो बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं

क्या सभी खिलोने बिक गए हैं बाजार के
क्या सभी मैदानो को खोद दिया गया है
क्या सभी बस्तों में सामान भर दिया गया है
क्या सभी किताबो को दीमके खा गयी हैं
क्या सभी मुस्काने किसी को बेच दी गयी हैं

सिगरेट पीते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे है
बोझा ढोते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे हैं
कूड़ा बीनते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे हैं
जिस्म बेचते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे हैं
सड़क चलते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे है


शायद सभी स्कूल दूकान बना दिए गए हैं
शायद सभी लोगो का जमीर बेच दिया गया है
शायद उपरवाले ने देखना बंद कर दिया है
शायद लोगो ने समाज में रहना बंद कर दिया है
शायद धरती से इंसान खतम हो गए है

Saturday, January 1, 2011

आओ नव वर्ष मनाये

आओ नव वर्ष मनाये

आओ इस् नव वर्ष पर एक नयी रेसीपी बनाये, एक नयी डिश
साल के बारह महीनो, तीन सौ पैसठ दिनों को मिलाकर एक दम शुद्ध और प्राकृतिक व्यंजन

सबसे पहले बारह महीनो को ले और उन्हे अच्छे से साफ़ कर ले जिससे उन महीनो से सारी इर्ष्या, घृणा और कडुआहट निकल जाए इन बारह महीनो को जितना संभव हो सके उतना साफ़ और ताज़ा बना ले

अब सब महीनो में से कुछ को अटठाईस, तीस और इकतीस के टुकडो यानी दिनों में काट ले इनको एक साथ एक गुच्छा न बनाये बल्कि एक एक दिन ले और उसे अच्छे से तैयार करे पूरी महेनत से, जितना बेहतर हो सके उतना बेहतर बनाये हर दिन में अच्छे से निष्ठां, साहस और धर्य मिलाये इसमें थोडा सा कर्म भी मिलाये जो इसका जायका पूरी तरह बदल देगा अब इस् एक दिन को थोड़ी सी आशा, दया, ध्यान, प्रार्थना और अच्छे कामो से सजाये इस् पर एक चुटकी मजा और इतना ही बचपन छिड़क दे और सबसे ऊपर एक कप भरकर अपनी सबसे बेहतर मुस्कान डाल दे

इस् तरह सारे दिनों को तैयार कर इन सभी को प्यार के एक बड़े से बर्तन में डाल दे जिसे अपने जोश की अग्नि से तब तक पकाए जब तक सारे दिन मिलकर एक साथ न जुड जाए इस् नव वर्ष की रेसीपी को शान्ति, निस्वार्थ और खुशी के साथ दुनिया के सामने रखे और देखे कैसे पूरी दुनिया इस् नयी डिश की तारीफ करती है

आओ नव वर्ष मनाये

इस् नव वर्ष पर आप हमारे साथ खुद को भी सजा सवार सकते हैं बस हमारे तरीके अपनाए और सफलता की सो प्रतिशत गारंटी पाए
अपने होठो को सुन्दर बनाने के लिए तुम बहुत ही दयालुता के शब्द बोले
आँखों की सुंदरता बढ़ाने के लिए लोगो की अच्छाई को देखे
अपना वजन कम कर सुन्दर सुडोल देह पाने को अपना भोजन भूखो के साथ बाँट कर खाए
आओ नव वर्ष मनाये