मैंने हिंदू धर्म में जन्म लिया और इसके जीवन दर्शन को लेकर हमेशा से मेरे मन में एक आदर भाव रहा है लेकिन, कालचक्र शायद इसे अपने पतन की ओर लेकर जा रहा है मुझे पीड़ा हो रही है कि हम सब इसको मानने वाले लोग कैसे मूक गवाह बन रहे हैं इस पतन के अगर जल्दी मेरे मन ने इस पीड़ा को बाहर न निकाला तो मैं जानता हू ये अच्छा नहीं, क्यूंकि मेरा मन व्यथित है उन सब चीजों से, जो धर्म को पतन की ओर लेकर जाती हैं किसी भी धर्म से जुडे लोगो का यूँ चुप हो जाना ही शायद कालांतर में वजह रहा होगा, हिंदू धर्म से नए धर्मो के उदय का क्यूँ सिद्धार्थ महलों में रहते हुए भी एक बेचैनी महसूस करते थे ? क्यूँ सिद्धार्थ ने इतना बड़ा कदम उठा लिया कि उन्होंने सब कुछ त्याग दिया ? क्यूँ सिद्धार्थ समाज के सुधार के लिए महावीर बन गए ?
आज इस पर मनन की जरुरत है ; इसके कारणों की जांच पड़ताल की जरुरत है कि क्यूँ आज सभी लोग शनि देव, साईं बाबा और बालाजी की पूजा करने लगे हैं ! क्यूँ गंगा को माँ कहते हैं और उसी में मल बहा देते हैं ! क्यूँ सबसे घटिया चीजों की मंदिर में चढाने को खरीदारी करते हैं ! क्यूँ हाथ की लकीरे हमारे कर्मो से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी हैं ! क्यूँ हर तरफ वास्तु, गणेश वाणी और न जाने कैसे कैसे लोग सब जगह बैठ कर सभी को उपदेश दे रहे हैं ! क्यूँ हम लोग एक ऐसे बहाव में बहे जा रहे हैं जिसका कोई लक्ष्य नहीं ! कितना दुखद है ये देखना कि हमारी आने वाली पीढियां उन रुढियो में जकड रही हैं, जिनको छोड़ने में बरसो लग गए हमे इससे दुखद क्या हो सकता है कि नीम्बू मिर्ची बेचना अब एक धंधा है, इससे दुखद क्या होगा जब पंडित सौदा करता है किसी की मृत्यु के क्रिया कर्म करने को, इससे दुखद क्या होगा जब हमारे समाज के सबसे सभ्य लोग अपने नामो में परिवर्तन करते हैं अपने जीवन में खुशिया लाने को, कहाँ जा रहे है हम ? क्यूँ सिर्फ पाखंड हमारे जीवन का सबसे महतवपूर्ण हिस्सा बन गया है ? क्यूँ समाज के लिए कुछ करने से ज्यादा यहाँ कथाओ का आयोजन किया जाता है ? क्यूँ सभी धर्माचार्य पैसा बनाने की मशीन बने हुए हैं ? ऐसा लगता है जैसे मानसिक आघात हो गया है मुझे या समाज अपनी चेतना खो रहा है
क्या आप भी भारत के वो कंप्यूटर इन्जिनियेर है जो नीम्बू मिर्ची खरीदते हैं ? शनिदेव को दान करते हैं ? ब्रहस्पति वार को शेव नहीं बनाते ? मंगलवार को अंडा नहीं खाते ? अपने नाम की स्पेल्लिंग बदलते है ? सुबह अखबार में सबसे पहले अपनी राशि देखते है ? मंदिर के आगे से जाते हुए कानो को हाथ लगाते है ? छीख आने पर थोडा रुक के काम करते हैं ? शनिवार को लोहा नहीं खरीदते, गर्भ में लड़की को मार डालते हो ? समाज के लिए पूर्ण रूप से संवेदनहीन हो और समाज के लिए कुछ नहीं करते ?
आओ दोस्तों समाज को बदले हम प्रकृति पूजक लोग है, साधारण जीवन जीने में विश्वास रखते है धार्मिक क्रियाओं में छिपे अर्थो को समझे नाकि उन्हें अन्धविश्वास बना ले खुद पर ज्यादा भरोसा करे वास्तु से भगवान पर भरोसा रखे अपनी राशि से ज्यादा और गीता के कृष्ण की बात को समझे जब उन्होंने कहा कि कर्म कर फल की इच्छा मत कर
अंतर्मन में उत्पन्न हुए, कुछ व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति से सम्बंधित, कुछ भावों को प्रदर्शित करने की एक छोटी सी कोशिश
अंतर्मन - मानव का वो साथी है जो उसको हमेशा अहसास दिलाता है की मानव भगवान का अंश है सच्चे अर्थो में हमेशा साथ खड़ा रहने वाला दोस्त अंतर्मन ही तो है जो हमेशा हमे कुछ भी गलत करने से रोकता है किसी भी काम से पहले मन कहता है रुक, सोच ले और हर गलत कदम पे वो अहसास कराता है कि भगवान देख रहा है लेकिन, आदमी अंतर्मन की आवाज को अनसुना कर आगे बढ़ता है; सभी गलत काम करता है, लोगो को ठगता है और फिर कहता है कि अच्छा हुआ जो ये काम कर लिया, कितना पैसा कमा लिया (जबकि उस समय भी अंतर्मन कहीं डर रहा होता है)
जब यह योजना बनी की अंग्रेजी ब्लॉग में रोसेन लगातार कुछ लिख रही है और मैं पंचतत्व में हिंदी ब्लॉग की कमी को पूरा करूँ तो मुझे लगा कि अंतर्मन की आवाज से बेहतर और क्या होगा लिखने को - जिसे हम सब सामने नहीं आने देना चाहते कोशिश है एक छोटी सी अंतर्मन की दशा बताने की - अगर लगे कि मैं उस आवाज को सुन पाया हूँ तो स्वागत करना; अन्यथा, एक दोस्त की तरह मुझसे इस बात की मंत्रणा करना कि क्यों मैं चाह कर भी अंतर्मन की आवाज़ सुन नहीं पाया
जब यह योजना बनी की अंग्रेजी ब्लॉग में रोसेन लगातार कुछ लिख रही है और मैं पंचतत्व में हिंदी ब्लॉग की कमी को पूरा करूँ तो मुझे लगा कि अंतर्मन की आवाज से बेहतर और क्या होगा लिखने को - जिसे हम सब सामने नहीं आने देना चाहते कोशिश है एक छोटी सी अंतर्मन की दशा बताने की - अगर लगे कि मैं उस आवाज को सुन पाया हूँ तो स्वागत करना; अन्यथा, एक दोस्त की तरह मुझसे इस बात की मंत्रणा करना कि क्यों मैं चाह कर भी अंतर्मन की आवाज़ सुन नहीं पाया
बहुत अच्छी तरह से कहा सर , वास्तव में मैं आप का एक अच्छा प्रशंसक बन गया हु .... आप का अंतर्मन तो मेरे मन को छु जाता है.... यह पहला ब्लॉग है जो में हमेशा पढता हु और हमेशा नए ब्लॉग के इंतजार में रहता हु... मुझे कभी भी ब्लॉग में रूचि नहीं रही लेकिन जब से आपका अंतर्मन पढ़ना शुरू किया है मेरी भी रूचि ब्लॉग में होती जा रही है.... धन्यवाद!!!
ReplyDeleteशोरित
Thanks shorit for giving a comment.
ReplyDeleteThese small comments shows that others are with you and give courage.
good artical ajay...
ReplyDeleteमंदिर के सामने से जाते हुए कान छुना कोई बुरी बात नहीं, दरअसल इसका मतलब ये होता है की हम इश्वर के आगे अपनी गलतियों की माफ़ी मांगते है.
ReplyDeleteधार्मिक कार्यों में छुपे अर्थ, लोग नहीं जानते लेकिन ये बड़े प्रभावी होते है, अगर आप किसी का अर्थ जानते हों तों हमसे शेयर करे, धन्यवाद.
ReplyDeleteYeah, It is very true. I agree with you. It is a complex to know why we are in such a bad shape. But it is very easy to come out from self pity and blame.
ReplyDeleteThere are many good people like Rajiv Dixit, Dr Bharat Hari, who are working hard to explore truth about our culture. You can read and listen their thoughts and propagate to your friends and family.
Spiritual leaders like Sri Sri Ravi Shankar, Chinmayanad, Amma from south has established the truth of Indian spirituality to all continents of globe. You can learn and work with these organization to spread their effective teaching to the needy people.
Be in the company of people who are making a change, this will establish faith in you and you will move forward.
love..Ajay Kostha
राज के लिए
ReplyDeleteराज कानो को हाथ लगाना बुरा नहीं लेकिन रोज एक ही बात बिना सोचे , बिना किसी संवेदना के और बिना किसी पश्चाताप के और उसके तुरंत बाद फिर वही गलत काम शुरू | अगले दिन फिर से कानो को हाथ | ये पाखंड नहीं तो क्या है | हम जैसे लोग ही बदल सकते हैं इन चीजों को , सामने आ सकते हैं हाथो में शीशा लेकर और दिखा सकते हैं दुनिया को पाखंड और असली जिंदगी का फर्क
धन्यवाद कुछ लिखने के लिए
मैं तुम्हे बताता हू धर्म के कर्म कांड में छिपे एक छोटे से अर्थ को | उत्तर भारत में एक त्यौहार मनाया जाता है "बड पूजा" जिसमे हिंदू लोग बड वट वृक्ष की पूजा करते हैं | ये त्यौहार वृक्षों को बचाने के उद्देश्य से मनाना शुरू किया गया होगा लेकिन आज हम लोग क्या करते हैं हम सब लोग उस दिन पूरे बड के पेडो को उजाड़ देते हैं | बड के पत्तों को तोड़कर अपने घर लाते है और उनकी पूजा करते है | ये है धर्म में छिपे अर्थ का सत्यानाश करना | ऐसे हजारो उदाहरण हमारे सामने होंगे | में आप सब लोगो से प्रार्थना करूँगा की अगर ऐसे उदाहरण आपके सामने भी है तो कृपया उनकी चर्चा करे |
ReplyDeleteवैसे लोग ऐसा जान बूझकर नहीं करते, अज्ञानता वश ऐसा कर बैठते है क्यूँ की वे इसका उद्देश्य नहीं जानते वर्ना बड की पूजा क्यूँ करते, मगर जैसा की लोगों में अभी भी काफी चीजों के बारे में काफी अज्ञानता है, खास कर धर्म के शेत्र में.
ReplyDeleteअजय जी क्या आप पुनर्जन्म में विश्वास करते है. अगर हाँ तों मैं बता सकता हू ऐसा क्यूँ होता है.
ReplyDeleteराज में जानना चाहता हू तूम , क्या कहना चाहते हो पुनर्जन्म के बारे में
ReplyDeleteबिलकुल सही चित्रण किया है आपने विषय का | मैं भी सहमत हूँ पूर्तया इस बात से कि
ReplyDelete"धार्मिक क्रियाओं में छिपे अर्थो को समझे नाकि उन्हें अन्धविश्वास बना ले, खुद पर ज्यादा भरोसा करे वास्तु से ज्यादा, भगवान पर भरोसा रखे अपनी राशि से ज्यादा, और गीता के कृष्ण की बात को समझे जब उन्होंने कहा कि कर्म कर फल की इच्छा मत कर"
राज मैं भी सुनना चाहती हुईं पुनर्जनम के बारे में |
मेरी बात आप को तभी समझ आएगी जब आप पुनर्जन्म में विश्वास रखते हों, जो इसमें विश्वास नहीं रखते ये बात उन लोगों के लिये नहीं है.
ReplyDeletesorry Raj i dont have faiith in next birth.. although somewhere inside me i also have a little faith perhaps when i want to do some things and want to live some persons in my next birth..
ReplyDeleteBut I am a curious person and definet will try to understand you
sorry ajay ji it is not understandable subject for those who didn't believe in next birth.
ReplyDeleteप्रिय राज
ReplyDeleteआप भी क्यों जिद पर अड़े हैं की अगर अजय पुनर्जन्म में विश्वास करता है तभी आप प्रश्न का उत्तर देंगे. यदि आप किसी को अपने पक्ष में करना चाहते हैं तो अपने पक्ष को रखिये. किसी भी बहस की सार्थकता तभी है जब दोनों पक्ष तर्कसम्मत हो कर विवेचना करें,
मेरे विचार में हिन्दू धरम की एक प्रमुख विशेषता हैं की यह आदमी को अपने विचार बिना किसी डर के पूरी तरह रखने की अनुमति देता है. आप से अनुरोध है की आप अपने विचार रखे ताकि हम जैसे अन्य सुधि पाठक इस बहस में शामिल हो सके.
राजीव
dear rajeev thanks for comment on this little effort...
ReplyDeleteYou are a good writer too make this blog as yours too... if you are interested in writing anything .. i can give you the writing permission of this blog or if you want anything in english than you can write in reflection..
Dharam ko sahi tarah se describe karna to hamare samaj ke vidwan logo ka ya phir pandito ka kaam hai taki wo logo ko bata sake ki ham kya galat kar rahe hai or kya sahi kar rahe hai, ye unki zimmevari hai, kyoki hame to pata hi nahi ki ham kya kar rahe hi.
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