अंतर्मन - मानव का वो साथी है जो उसको हमेशा अहसास दिलाता है की मानव भगवान का अंश है सच्चे अर्थो में हमेशा साथ खड़ा रहने वाला दोस्त अंतर्मन ही तो है जो हमेशा हमे कुछ भी गलत करने से रोकता है किसी भी काम से पहले मन कहता है रुक, सोच ले और हर गलत कदम पे वो अहसास कराता है कि भगवान देख रहा है लेकिन, आदमी अंतर्मन की आवाज को अनसुना कर आगे बढ़ता है; सभी गलत काम करता है, लोगो को ठगता है और फिर कहता है कि अच्छा हुआ जो ये काम कर लिया, कितना पैसा कमा लिया (जबकि उस समय भी अंतर्मन कहीं डर रहा होता है)

जब यह योजना बनी की अंग्रेजी ब्लॉग में रोसेन लगातार कुछ लिख रही है और मैं पंचतत्व में हिंदी ब्लॉग की कमी को पूरा करूँ तो मुझे लगा कि अंतर्मन की आवाज से बेहतर और क्या होगा लिखने को - जिसे हम सब सामने नहीं आने देना चाहते कोशिश है एक छोटी सी अंतर्मन की दशा बताने की - अगर लगे कि मैं उस आवाज को सुन पाया हूँ तो स्वागत करना; अन्यथा, एक दोस्त की तरह मुझसे इस बात की मंत्रणा करना कि क्यों मैं चाह कर भी अंतर्मन की आवाज़ सुन नहीं पाया

Friday, December 10, 2010

मौन का खौफ

अपने मन की शांति के लिए जब मैंने सबसे बड़ा स्वार्थी बनने की सोची तो कुछ समय बाद लगा मैं समाज के सामने नग्न खड़ा हो जाऊं क्या ? उस समय कितने प्रश्न मेरे सामने आ कर खड़े हो गए जब मैं हर काम किसी और के लिए करना चाहता था | लोग जानना चाहते थे क्यों करना चाहता हू मै कोई भी काम जिस से समाज का कुछ भला होता हो ? क्या चाहता हू मैं, क्या मिलता है मुझे, जरूर कोई गुप्त अजेडा है, इसको वर्ल्ड बैंक से पैसा मिलता है क्या ? कितने प्रश्न, कितने चहरे, कितने सफ़ेद झूठ, कितने टूटते ख्वाब और परदे के पीछे बनते कितने प्लान | वो लोग जिन्हें मैंने अपनी छत्रछाया माना था उनके उधड़ते जिस्म, लोगो का कैसा इस्तेमाल, भावनाओ का कैसा खिलवाड़, अखबारों में छपने को फोटो खिंचवाती नकली मुस्काने और अखबारों में छपती ऐसी खबरे जिनका सच से कोई सरोकार नहीं | क्या-क्या नहीं देखा मैंने | सच बात तो ये है कि एक डर मेरे मन में घर कर गया है, अच्छा होने पर हो सकने वाले नुक्सान का डर | उन मौन लोगो का डर जो हर प्लान के पीछे होते हैं, वो मौन लोग जो हर चीज़ से भारी होते हैं, वो लोग जिनका मौन एक खोफ पैदा करता है, उन्ही मौन लोगो की जबानी समाज का सच लिखने की कोशिश है यह -

मौन स्वीकृति थी तेरी
और मै भी कहाँ कुछ बोला था
भ्रष्टाचार के कोलाहल में
जब एक सुशासन डोला था

मौन टूट गया जब तेरा
तब ही मैं भी बोला था
जिस दिन सुशासन की अर्थी पे
तू सगो के जैसा डोला था

कितने जाम चले थे तब
सत्ता के तहखानो में
जिस दिन सुशासन जल रहा था
मौन पड़े शमशानो में

जो तू बोला अखबार छपा
जो में बोला टीवी पे दिखा
हाल सुशासन के घर का
न कहीं दिखा, न कहीं छपा

एक और सुशासन आया है
देखो कैसा सीना ताने
चल जाल फेकते हैं दोनों
वो संग चले या म्रत्यु से मिले

कलुषित समाज के मालिक हम
सबसे काले, सबसे काले
तुम क्यों घूर के देखते हो
तुम ही हो हमारे रखवाले

बलि चढोगे तुम भी सब
एक एक करके आते जाओ
या मौन रहो, चुपके से जियो
जब मौत आये जाते जाओ

कल फिर से सुशासन आएगा
अपनी बाजुएं दिखायेगा
हम घेरेंगे, उसे मारेंगे
कोई न बचाने आएगा

चल मौन बैठ जाते है अब
और फिर से खेल खेलते हैं
बिक जाओ या मिट जाओ
बस एक नियम पे चलते है

3 comments:

  1. बलि चढोगे तुम भी सब
    एक एक करके आते जाओ
    या मौन रहो, चुपके से जियो
    जब मौत आये जाते जाओ

    बहुत खूब

    ReplyDelete
  2. इतना आक्रोश मन में दबा है फिर कैसे इतना शांत रह लेते हो दोस्त ... हम लोग तुम्हे सबसे शांत कहते हैं और तुम्हारी रचनाये आग लगा देती है

    ReplyDelete