अंतर्मन - मानव का वो साथी है जो उसको हमेशा अहसास दिलाता है की मानव भगवान का अंश है सच्चे अर्थो में हमेशा साथ खड़ा रहने वाला दोस्त अंतर्मन ही तो है जो हमेशा हमे कुछ भी गलत करने से रोकता है किसी भी काम से पहले मन कहता है रुक, सोच ले और हर गलत कदम पे वो अहसास कराता है कि भगवान देख रहा है लेकिन, आदमी अंतर्मन की आवाज को अनसुना कर आगे बढ़ता है; सभी गलत काम करता है, लोगो को ठगता है और फिर कहता है कि अच्छा हुआ जो ये काम कर लिया, कितना पैसा कमा लिया (जबकि उस समय भी अंतर्मन कहीं डर रहा होता है)

जब यह योजना बनी की अंग्रेजी ब्लॉग में रोसेन लगातार कुछ लिख रही है और मैं पंचतत्व में हिंदी ब्लॉग की कमी को पूरा करूँ तो मुझे लगा कि अंतर्मन की आवाज से बेहतर और क्या होगा लिखने को - जिसे हम सब सामने नहीं आने देना चाहते कोशिश है एक छोटी सी अंतर्मन की दशा बताने की - अगर लगे कि मैं उस आवाज को सुन पाया हूँ तो स्वागत करना; अन्यथा, एक दोस्त की तरह मुझसे इस बात की मंत्रणा करना कि क्यों मैं चाह कर भी अंतर्मन की आवाज़ सुन नहीं पाया

Thursday, January 6, 2011

बाल श्रम


बचपन एक ऐसा समय है जीवन का जो इंसान को हमेशा याद रहता है क्यूंकि वही होता है एक अच्छी याद की तरह, जिसमे बिना किसी फ़िक्र के हम जीते हैं , जहां हमे सोचना नहीं होता की कोई इंसान क्या कहेगा जब हम कोई बेवकूफी करेंगे ,जहां हमे सोचना नहीं होता की रोटी न मिली तो क्या होगा , जहां से हमारी इमारत की पहली ईंट लगाईं जाती है , जहां से हम समाज को एक बेहतर इंसान दे सकते हैं
हमारे घरों पर लाखो बच्चे काम कर रहे हैं , लाखो दुकानों पर बच्चे काम कर रहे हैं लेकिन हमारी आँखों में कोई प्रश्न नहीं उठता की क्यूँ बच्चे काम कर रहे हैं कितना अजीब है सबसे बड़ा प्रश्न और हमारी आँखों को नहीं दीखता , क्या कभी आपने चाय की दूकान पर काम करते बच्चे को एक टोफ़ी दी है, या नए साल पर नए जूते या कभी कहा है चल मैं पढाता हु तुझे अगर नहीं दिए तो एक बार दे कर देखना, कह कर देखना उसकी आँखों की खुशी आपको इतना कुछ देगी जो आप पैसो से नहीं खरीद सकते एक बार कोशिश करे बाल श्रम पर लिखी मेरी यह कुछ लाईने है इस् आशा के साथ की शायद किसी को झकझोर पाए बस एक टोफ़ी देने के लिए, या एक के हाथ में किताब देने के लिए

सड़क पर चलते बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं
साइकिल पर टिफ्फिन लटकाए बच्चे
दूकान में चाय के बर्तन धोते बच्चे
सबके घरों में झाड़ू पोचा करते बच्चे
लाखो बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं

क्या सभी खिलोने बिक गए हैं बाजार के
क्या सभी मैदानो को खोद दिया गया है
क्या सभी बस्तों में सामान भर दिया गया है
क्या सभी किताबो को दीमके खा गयी हैं
क्या सभी मुस्काने किसी को बेच दी गयी हैं

सिगरेट पीते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे है
बोझा ढोते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे हैं
कूड़ा बीनते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे हैं
जिस्म बेचते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे हैं
सड़क चलते बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे है


शायद सभी स्कूल दूकान बना दिए गए हैं
शायद सभी लोगो का जमीर बेच दिया गया है
शायद उपरवाले ने देखना बंद कर दिया है
शायद लोगो ने समाज में रहना बंद कर दिया है
शायद धरती से इंसान खतम हो गए है

2 comments:

  1. बाल श्रम एक ऐसा ब्लॉग रहा जिसने एक ऐसी नयी मुहीम की शुरुआत करदी जो शायद बहुत से बच्चो की जिंदगी बदल दे | बाल श्रम को लिखने के पश्चात संजय नागपाल ने हमे इस प्रोजेक्ट में हेल्प करने की बात कही जिससे प्रोजेक्ट उड़ान शुरू हुआ जिसमे लगभग ५५ -६५ बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं | हम जल्दी ही इसे विस्तृत करेंगे और शायद एक दो क्लास और शुरू हो

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