अंतर्मन - मानव का वो साथी है जो उसको हमेशा अहसास दिलाता है की मानव भगवान का अंश है सच्चे अर्थो में हमेशा साथ खड़ा रहने वाला दोस्त अंतर्मन ही तो है जो हमेशा हमे कुछ भी गलत करने से रोकता है किसी भी काम से पहले मन कहता है रुक, सोच ले और हर गलत कदम पे वो अहसास कराता है कि भगवान देख रहा है लेकिन, आदमी अंतर्मन की आवाज को अनसुना कर आगे बढ़ता है; सभी गलत काम करता है, लोगो को ठगता है और फिर कहता है कि अच्छा हुआ जो ये काम कर लिया, कितना पैसा कमा लिया (जबकि उस समय भी अंतर्मन कहीं डर रहा होता है)

जब यह योजना बनी की अंग्रेजी ब्लॉग में रोसेन लगातार कुछ लिख रही है और मैं पंचतत्व में हिंदी ब्लॉग की कमी को पूरा करूँ तो मुझे लगा कि अंतर्मन की आवाज से बेहतर और क्या होगा लिखने को - जिसे हम सब सामने नहीं आने देना चाहते कोशिश है एक छोटी सी अंतर्मन की दशा बताने की - अगर लगे कि मैं उस आवाज को सुन पाया हूँ तो स्वागत करना; अन्यथा, एक दोस्त की तरह मुझसे इस बात की मंत्रणा करना कि क्यों मैं चाह कर भी अंतर्मन की आवाज़ सुन नहीं पाया

Wednesday, January 26, 2011

गणतंत्र दिवस पर जश्ने आज़ादी

आज़ादी के सपने देख सुभाष चंद बोस ने अपने प्राण देश पर न्योछावर कर दिए | भगत सिंह हँसते हँसते फांसी पर झूल गए | हज़ारो लोग अपने घरों को छोड़ बस देश के हो गए | ऐसे लोग जिन्हें न नाम की चाह थी और जिन्हें न मरने पर मिलने वाला मुवावजा चाहिए था | उनकी आजादी को हम जी रहे हैं पूरी बेशर्मी के साथ | शायद जय घोष के बाद की भावनाँए अगर आती भी है तो गला खराश कर तभी बाहर थूकने का जज्बा हम सब में है | सड़क चलती मौत के मुआवजे को लेने को सड़क बंद करना आम है चाहे उस में फंस कोई और मर जाए | पैसे के लिए धोखा देना तो आदत है लेकिन अब तो साधारण बातचीत के लिए भी झूठ बोलना आम है | हमने आज़ादी में जो भी कुछ पाया इतना तो हमने आज तिरेसठ साल बाद सीख ही लिया है की धर्म का कैसे इस्तेमाल हो सकता है, जातियों में लोगो को बाटने के क्या फायदे हो सकते हैं, कैसे नोट देकर वोट लिए जा सकते हैं | आओ आज़ादी का जश्न मनाये भले ही लाखो लोग भूख से मर जा रहे हो, भले ही करोडो लोग अब भी पढ़ना न जानते हो , भले ही हज़ारो लोग बिना किसी अपराध के जेल में सड़ रहे हो | आओ जश्न मनाये कुछ भी कर सकने की आज़ादी का | आओ नारा लगाए इस् दिवस पर झंडा ऊँचा रहे हमारा जिसका अर्थ में बस इतना ही समझता हू की डंडा ऊँचा रहे हमारा कह नहीं सकते इसलिए डंडे में एक कपडा लपेट कहने लगे झंडा ऊँचा रहे हमारा |

हम आजाद भारत के आज़ाद नागरिक
आज़ाद है आज़ादी के तिरेसठ साल बाद
सड़क पर चलते हुए थूकने को,
घर का कूड़ा, पान का पीक
मूंगफली के छिलके, गुटके के पाउच
आज़ादी के साथ सड़क पर डालने को

हम आज़ाद भारत के आज़ाद नागरिक
आज़ाद है एक लिखित संविधान के साथ
सड़क चलते बच्चो, लड़कियों को घूरने को
सड़क के घायलों को मरता हुआ देखने को
घर में बैठ इंसानियत की बात करने को
घर में अपनी बंद मुठ्ठिया लहराने को

हम आजाद भारत के आज़ाद नागरिक
आज़ाद है एक पूरे पुलिस तंत्र के साथ
सड़क पर चलते हुए लुटने पिटने को
कोई भी काम पैसे से करा लेने को
किसी भी फैसले को खरीद लेने को
किसी भी इंसान को कहीं फ़साने को

हम आजाद भारत के आज़ाद नागरिक
आज़ाद है हवा में जोर से नारे लगाने को
झंडा ऊँचा रहे हमारा जोर से चिल्लाने को
ऊँचे ओहोदो के साथ ज्यादा भ्रष्ट होने को
हर काम के लिए सरकार को कोसने को
घर में बेशर्मी के साथ चारपाई पे लेटने को

आओ आज़ादी का जश्न मनाये
हम भी अपने झंडे या शायद डंडे
हवा में जोर शोर से लहराए
नारों में छिपे अर्थो को समझे
झंडा ऊँचा रहे हमारा का असली
अर्थ समझ अपना डंडा ऊँचा रखे

5 comments:

  1. हर पंक्ति सटीक है.....

    गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं.....

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  2. Very well said.
    It's absolutely true.

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  3. थैंक्स मोनिका, पायल
    अगर टिप्पणिय आती हैं तो लिखने का जोश आता है और लगता है आपकी बात को कोई सुन रहा है

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  4. एक एक पक्ति सत्य प्रतीत जान पडता है

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