अंतर्मन - मानव का वो साथी है जो उसको हमेशा अहसास दिलाता है की मानव भगवान का अंश है सच्चे अर्थो में हमेशा साथ खड़ा रहने वाला दोस्त अंतर्मन ही तो है जो हमेशा हमे कुछ भी गलत करने से रोकता है किसी भी काम से पहले मन कहता है रुक, सोच ले और हर गलत कदम पे वो अहसास कराता है कि भगवान देख रहा है लेकिन, आदमी अंतर्मन की आवाज को अनसुना कर आगे बढ़ता है; सभी गलत काम करता है, लोगो को ठगता है और फिर कहता है कि अच्छा हुआ जो ये काम कर लिया, कितना पैसा कमा लिया (जबकि उस समय भी अंतर्मन कहीं डर रहा होता है)

जब यह योजना बनी की अंग्रेजी ब्लॉग में रोसेन लगातार कुछ लिख रही है और मैं पंचतत्व में हिंदी ब्लॉग की कमी को पूरा करूँ तो मुझे लगा कि अंतर्मन की आवाज से बेहतर और क्या होगा लिखने को - जिसे हम सब सामने नहीं आने देना चाहते कोशिश है एक छोटी सी अंतर्मन की दशा बताने की - अगर लगे कि मैं उस आवाज को सुन पाया हूँ तो स्वागत करना; अन्यथा, एक दोस्त की तरह मुझसे इस बात की मंत्रणा करना कि क्यों मैं चाह कर भी अंतर्मन की आवाज़ सुन नहीं पाया

Monday, February 14, 2011

ख़ुशी एक मनोदशा


आज बैठे बैठे अचानक इस बात पर बहस हो गयी की मजा क्या है और ख़ुशी , दुःख क्या है बहस का निचोड़ बस एक ही की वाकई एक मनोदशा भर है सब , कोई भी चीज़ किसी को दुखी नहीं कर सकती बस उसको समझाना आना चाहिए खुद को, और आदमी किसी भी चीज़ से खुश नहीं हो सकता अगर वो नहीं जानता खुश होना आइये देखते हैं कैसे बदल जाती हैं चीज़े

पकिस्तान के भूकंप में एक व्यक्ति सिकंदर अपने होशो हवास लगभग खो चूका है क्यूंकि उसके तीन जवान बेटे इस भूकंप की भेट चढ़ गए वो अपनी पत्नी के साथ उनकी म्रत्यु पर विलाप कर रहा है तभी पता चलता है की पड़ोस के इमरान की बीवी भी उसके बच्चो के साथ काल के गाल में समां गयी इस खबर के सदमे के साथ साथ सिकंदर का दुःख थोडा कम हो जाता है वो कहता है ए खुदा मैं खुश नसीब हु की तुने मुझे मेरी पत्नी का साथ बक्शा कुछ नहीं बदला फिर भी मन ने समझा लिया और दुःख थोडा कम हो गया मुमताज़ अपनी कहानी बताते हुए कह रहा है की खुश नसीब हु अपने बच्चो को दफ़नाने को जगह मिल गयी वरना उसके पडोसी तो अपने बच्चो को दफना भी नहीं पाए वो दो लोग जो अपना सब कुछ लुटा बैठे हैं तब भी एक का दुःख दुसरे से कम है बहुत कम क्यूंकि दुःख सुख बस एक मनोदशा भर हैं

हम कितनी बातो से दुखी रहते हैं हमारा मकान नहीं बना तब क्यूँ न सोच ले की दुनिया में कितने लोग बिना छत के रह रहे हैं, जब हम फाईव स्टार होटल में खाना नहीं खा पाते तब क्यूँ नहीं सोचते कितने ही लोग भूखे सो जाते हैं, जब हम छोटी छोटी बिमारी से परेशान होते हैं तब क्यूँ नहीं हम सोच पाते की कितने ही लोग कटे फटे अंगो के साथ बिना इलाज़ के जीने को मजबूर हैं बच्चो को हमने सिर्फ आगे बढ़ने की बाते पढ़ाई हैं उसको सफल होने के आशीर्वाद दिए हैं, उसको नाम शोहरत पैसा सब कुछ पाने के लिए मंदिरों मस्जिदों में माथा टिकाया है शायद हम सब भूल गए हैं की अगर हमने उसे बस खुश रहने का आशीर्वाद दिया होता, उसे सिखाया होता की देख कितने दुःख है दुनिया में और तू कितना खुश नसीब है , उसे सिखाया होता की भगवान् को धन्यवाद कर की उसने तुझे स्वस्थ शरीर दिया , उसे सिखाया होता की ख़ुशी बस मन के भाव में छिपी है किसी चीज़ के होने न होने से उसका कोई मतलब नहीं और उसे सिखाया होता की खुश रहना मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है तो आज की अंधी दौड़ शुरू ही नहीं हो पाती आदमी के जीवन को आरामदायक बनाने वाली चीज़े उसकी जिंदगी का जंजाल न बन जाती आओ एक नयी पहल करे खुश होना सीखे जब कुछ पास न हो तब, जब हर कोई तुमसे आगे निकल जाने के लिए भाग रहा हो तब, जब तुम्हारा बच्चा मिटटी में लथपथ हो घर का फर्श खराब कर दे तब और जब तुम्हारा बेटा कहे मैं जिंदगी में बड़ा आदमी नहीं बन पाया लेकिन बहुत खुश हु तब आओ खुश होना सीखे

12 comments:

  1. सच लिखा आपने...| लेकिन, पढ़ते पढ़ते ये ख्याल आया है कि कितने अजीब हैं हम लोग कि हमें अपने दुःख को कम करने के लिए, किसी और को अपने से बड़े दुःख में देखने की ज़रूरत होती है | इसी तरह कि कितनी सारी कमियाँ हैं हम मनुष्यों में जिनको हमें सुधारने की ज़रुरत है |

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  2. मनुष्य भूखा है,
    भूखा है रोटी के लिए,
    नहीं केवल भूखा नहीं रोटी के लिए, ये भूखा है हर स्वाद के लिए जिसे जीभ चखना चाहती है,
    मनुष्य भूखा है फिल्म देखने के लिए,
    नहीं केवल भूखा नहीं फिल्म देखने के लिए, ये भूखा है हर दृश्य देखने के लिए जो आँखे देखना चाहती है,
    मनुष्य भूखा है मधुर संगीत सुनने के लिए,
    नहीं केवल भूखा नहीं मधुर संगीत सुनने के लिए, ये भूखा है हर मधुर ध्वनि सुनने के लिए,
    मनुष्य भूखा है खुशबू के लिए,
    नहीं केवल भूखा नहीं खुशबू के लिए, ये भूखा है हर अच्छी खुशबू पाने के लिए जो उसे अच्छी लगती हो,
    क्या बताऊ और बहुत है कहने के लिए, रामायण खतम हो सकती है, महाभारत खतम हो सकती है, सुनते हुए, मगर इंसान की भूख खतम नहीं हो सकती क्यूँ की ये मन की गुलाम है, और जो मन का गुलाम है, उसे जीवन भर मन की भूख मिटानी होगी, उसे जीवन भर मन की भूख मिटानी होगी. धन्यवाद (ये सब कुछ मेरे मन से अनायास ही निकल पड़ा,अनायास ही निकल पड़ा.)

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  3. thanks payal
    हाँ ये सच है की भगवन ने हमे किसी और कारण के लिए बनाया था और हम न जाने कहाँ आ गए | शायद भगवान् चाहता था की हम पूरी दुनिया का ध्यान रखे सब जानवरों पेड़ पौधों पर राज करे और सुन्दर प्रकृति का ध्यान रखे लेकिन अब शायद भगवान् पछताता होगा अपनी भूल के कारण

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  4. राज एक अच्छे कमेन्ट के लिए शुक्रिया | सच इंसान की भूक इतनी बढ़ गयी है की अब वो खुद को ही खा जाने की राह पर चल पड़ा है अपने बच्चे अपना परिवार अपनी दुनिया को खा जाने वाला सिर्फ इंसान ही हो सकता है

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  5. This is true we dont enjoy happiness or we dont feel pain or sadness. One day my father got a profit of almost rs 10000.00 after selling shares of some company and was very happy but till evening he started alomost weeping because he got profit after selling shares and that share is almost dopuble till evening means he got double profit if he sold it in evening. he forget that he earn 10000 rs in single day but ... we are like that

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  6. ख़ुशी का कोई पैमाना नहीं होता है,
    कभी छोटी सी बात से भी आँखों में पानी भर जाता है,
    और कभी बड़ी ख़ुशी भी बेमानी लगती है,
    पर ख़ुशी तो ख़ुशी होती है,
    इन्सान के लिए वो पल कितना कठिन होता है
    जब ज़िन्दगी कि सबसे बड़ी ख़ुशी पास होती है
    और इन्सान उस ख़ुशी को सँभालने के लिए
    पता नहीं कैसे कैसे जतन करता है,
    और मंद मंद मुस्कुराता रहता है!

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  7. ...कोई भी चीज़ किसी को दुखी नहीं कर सकती बस उसको समझाना आना चाहिए खुद को.....

    आपने बिलकुल सही लिखा है... अगर हम खुद को समझा ले तो कोई भी चीज़ हमे दुखी नही कर सकती....!!!

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  8. यह वक्त गुजर जाएगा। सच! इन चार शब्दों के वाक्य में जीवन की कितनी बड़ी सच्चाई छुपी है।

    सभी जानते हैं कि सुख-दुख जीवन के दो पहलू हैं जिनका क्रमानुसार आना-जाना लगा ही रहता है। किंतु हम सब कुछ जानते-समझते हुए भी दोनों ही वक्त अपनी भावनाओं-संवेदनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते। जब खुशियों के पल हमारी झोली में होते हैं तो उस समय हम स्वयं में ही इतने मग्न हो जाते हैं कि क्या अच्छा क्या बुरा, इस पर कभी विचार नहीं करते हैं।

    इसी तरह दुःखद घड़ी में भी अपना आपा खो बेसुध होकर सब भूल जाते हैं। छोटे-से छोटे दुःख तक में धैर्य-संयम नहीं रख पाते। बुद्धि-विवेक व आत्मबल होने के बावजूद स्वयं को इतना दयनीय, असहाय व बेचारा महसूस करते हैं कि आत्मसम्मान, स्वाभिमान तक से समझौता कर लेते हैं। यही कारण है कि सब कुछ होते हुए भी उम्रभर अयोग्य-असफल होने लगते हैं।

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  9. thanks Sameer
    You got the right meaning..
    I want to say this.. we lost real feelings.. our happiness or sadness depends on others. We judge our feelings with the others.

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  10. वाह शोरित क्या खूब लिखा
    पहला कमेन्ट है इसलिए बड़ा सा शुक्रिया
    सच में दिल खुश हो गया
    वाकई ख़ुशी और दुःख का कोई पैमाना नहीं होता कब कौन सी चीज़ सब कुछ हिला दे और कब तूफ़ान भी शांति से गुजर जाए ये इंसान ही जानता है |

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  11. हाँ संदीप शायद यही लिखना चाह रहा था की सुख दुःख को महसूस करे अच्छे से
    रोने के बाद लगे की हाँ दुःख हुआ था और हसने के बाद लगे वाह क्या टाइम था रोना भी याद रहे और हसना भी
    यही जिंदगी है न की याद ही न रहे कब रोये थे और कब हंस लिए
    गुड तुम यहाँ तक आये

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  12. aaj aise hi koi friend baat karne lagi ki bachpan ke din bhi kya din the na...
    to hamara conversation kuch aise hua:

    maine kaha aisa nahin lagta ki time change nahin hota balki hum hi change hote jaate hain... zindgi ki events hamare dimag ki dahi bana deti hain... bus bachpan mein kyonki zyada zindgi dekhi nahin hoti isliye doodh ki tarah saral hoti hain zindgi... phir usmein experiences ke bacterias milkar us doodh jaisi saral zindgi ki complex dahi bana dete hain

    phir usne kaha ki sach baat hai aur bus is dahi ka lassi bana kar pina aana chahiye hum sabko kyonki lassi banakar peena nahin aayega to dahi aise hi pade pade sadti jayegi...

    to bus mujhe ye badhiya paribhasha lagi zindgi ki... aur apki khushi ek manodasha ke sath is paribhasha ka taartamya sa jaan pada...

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