
कुछ समय पहले मैंने कुछ लिखा था, बस से आते समय एक छोटे बच्चे को देखकर | मेरी कल्पना है यह, लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरा अवसाद मुझे एक दिन इतनी शक्ति देगा जब मैं इस पूरे प्रकरण को दोहरा पाऊँगा |
बच्चा
वो आदम जैसा बच्चा था
सर गंजा, रंग का काला था
ना जाने कहाँ से आया था
छाती में हड्डी का घेरा
आँखों के नीचे रंग गहरा
पतली डंडी से पाँवों पर
एक घड़ा सा पेट टिका
आँखे झप झप कुछ इधर उधर
न जाने था क्या कुछ ढूंढ रहा
कूड़े की एक ऊँची ढेरी पर
नंगे पाँवो वो चलता था
न जाने था क्या सोच रहा
न जाने था क्या देख रहा
जब उत्सुकता से मैंने देखा
वो दौड़ा दौड़ा, भागा आया
हड्डी सा, एक हाथ उठा
बोला बस दे दो एक रूपया
मैं सम्मोहित और झकझोरा सा
अपने आँगन में बैठा हूँ
मन में है मेरे द्वन्द मचा
क्यों मानव जीवन मुझे मिला
जीवन की अब इस संध्या पर
जाना मैंने मानव होना
मन बोला चल, तू अब चल
वो भी तो एक मानव जीवन था
तब साथ लिया वो नंग धडंग
उसको घर पे अपने लाया
अब सुनता हूँ जब दुःख उसके
तो गुनता हूँ मैं सुख अपने
दाता ने मुझको क्या न दिया
ये आज मुझे है लगा पता
जीवन का आनंद है क्या
यह नंग धडंग ने बता दिया |
Your posts are so touching and penetrate deep inside heart. I am crying after reading this post. Definitely this all will become a big strength for you.
ReplyDeleteअब सुनता हूँ जब दुःख उसके
ReplyDeleteतो गुनता हूँ मैं सुख अपने
दाता ने मुझको क्या न दिया
ये आज मुझे है लगा पता
जीवन का आनंद है क्या
यह नंग धडंग ने बता दिया |
Kya baat kahee aapne!
Nihayat achhee rachana!
ReplyDeleteSwagat hai!
सभी को जानकारी के लिये बता दू ये केवल रचना ही नहीं है, ये तों अजय जी की भावनाओ से पिरोये गए मोती है.
ReplyDeleteअंतर्मन को झकझोरती प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteThanks to everyone for suggestions and motivation
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..धन्यवाद|
ReplyDeletevery good post ajay. I read it many time and always feel as something penetrate me deep..
ReplyDeletegood
superlike!!
ReplyDeleteThanks dosto
ReplyDeleteThanks dosto
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