समाज भ्रष्ट्र हो गया है या हम सब लोग एक ही रस्ते के सहयात्री हैं| कहते हैं समाज वही तो है जो हम हैं , हम सब लोग मिलकर समाज बनाते हैं और क्या कमाल है, वो बन जाता है एक भ्रष्ट्र समाज| क्या हमे बस इतना सा साहस नहीं करना है कि खुद को सुधार ले,अपने लिए कोई नियम बना ले | पर शायद अपने लिए कोई नियम बनाना सबसे मुश्किल होता है और इसीलिए हम भी सभी लगे हैं दुनिया को सुधारने में , बिना ये सोचे कि आओ देखे अपने को आइने में क़ि कैसे हमारे जिस्म मोटे हो रहे हैं,अकर्मणयता कैसे हमारी दिनचर्या में शामिल हो गयी है,कैसे भ्रष्ट्रता हमारी दैनिक जरुरत की तरह हमे अजीब नहीं लगती,कैसे जब हमारा स्वार्थ पूरा होता है तब हर बात माफ हो जाती है,कैसे हम अखबार पढते समय कहते हैं | हर जगह घूसखोरी - क्या होगा इस देश का? कैसे हम नकली दवा खाकर मरते रहते हैं और बस कहते हैं यहाँ हर चीज़ नकली है | ये उस समाज की बात है जिसके लिए कहा जाता है यहाँ मानव मुल्य अभी भी जिन्दा हैं , ये उस समाज की बात है जहां रिश्तों का लिहाज है अभी भी , ये उस समाज की बात है जहां दूध, घी, मसाले, पूजा की सामग्री, दवाई और तो और जानवरों के खाने का सामान भी नकली बनता है| आप क्या सोचते हैं आने वाले दिन कैसे होंगे , आपके अपने बच्चे क्या खाकर जिन्दा रहेंगे| मेरे खवाबो में कोई आकर कुछ कहता है मुझसे,सोचता हू ये सभ्य समाज मुझे भी कोई दिशा देगा सोचने की | इसीलिए एक ख्वाब को आपके साथ खर्च किया है |
ख्वाब
आज मेरे ख्वाबो में एक आदमी आया
उन ख्वाबो में जिनमे परियाँ आती थी
उन ख्वाबो में जिनमे सुख ही सुख था
हाँ, उन ख्वाबो में एक आदमी आया
नंग धडंग मैला कुचैला बिखरा सा आदमी
पिचका हुआ शरीर, निकली हुई हड्डियाँ
हाँ एक गन्दा सा आदमी मेरे ख्वाबो में आया
उन ख्वाबो में जिनमे परियाँ आती थी
में कुछ कहता उससे पहले ही कहने लगा
डरना मत, अपने साये से डरना मत
में चंडाल नहीं हूँ, में भी एक आदमी हूँ
हाँ ऐसा कहा ख्वाबो के उस आदमी ने
उसने कहा मुझसे डरता है, मुझसे
कपड़ो में छिपे अपने जिस्म को देख
आईने में चहेरे को देख,पिचकने लगा है
हाँ ऐसा कहा ख्वाबो के उस आदमी ने
कहने लगा मैंने मार देना चाह था गरीबी को
में लड़ता फिरता था जंगलियों की तरह
इसलिए खतम हो गया,पिघल गया मैं
हाँ ख्वाबो का आदमी मुझे यही सुनाता रहा
उसने कहा अब तू मत लड़ना जंगलियों की तरह
नोच ले जिसका चेहरा नोच सकता हो देख
फिर शहंशाह बना देंगे मेरे देश के भ्रष्ट्र लोग
हाँ ऐसा कहा ख्वाबो के उस आदमी ने
अब जब मैं पूरी तरह जाग चुका हूँ
सोच रहा हूँ उस अच्छे से आदमी के बारे में
जिस से सब डरते थे, जिसे सब अच्छा कहते थे
मुझेअच्छा सा डर बनना चाहिए या फिर शहंशाह
मेरे दोस्तों खुद से पूछ कर बताना मुझे
उन ख्वाबो में जिनमे परियाँ आती थी
उन ख्वाबो में जिनमे सुख ही सुख था
हाँ, उन ख्वाबो में एक आदमी आया
नंग धडंग मैला कुचैला बिखरा सा आदमी
पिचका हुआ शरीर, निकली हुई हड्डियाँ
हाँ एक गन्दा सा आदमी मेरे ख्वाबो में आया
उन ख्वाबो में जिनमे परियाँ आती थी
में कुछ कहता उससे पहले ही कहने लगा
डरना मत, अपने साये से डरना मत
में चंडाल नहीं हूँ, में भी एक आदमी हूँ
हाँ ऐसा कहा ख्वाबो के उस आदमी ने
उसने कहा मुझसे डरता है, मुझसे
कपड़ो में छिपे अपने जिस्म को देख
आईने में चहेरे को देख,पिचकने लगा है
हाँ ऐसा कहा ख्वाबो के उस आदमी ने
कहने लगा मैंने मार देना चाह था गरीबी को
में लड़ता फिरता था जंगलियों की तरह
इसलिए खतम हो गया,पिघल गया मैं
हाँ ख्वाबो का आदमी मुझे यही सुनाता रहा
उसने कहा अब तू मत लड़ना जंगलियों की तरह
नोच ले जिसका चेहरा नोच सकता हो देख
फिर शहंशाह बना देंगे मेरे देश के भ्रष्ट्र लोग
हाँ ऐसा कहा ख्वाबो के उस आदमी ने
अब जब मैं पूरी तरह जाग चुका हूँ
सोच रहा हूँ उस अच्छे से आदमी के बारे में
जिस से सब डरते थे, जिसे सब अच्छा कहते थे
मुझेअच्छा सा डर बनना चाहिए या फिर शहंशाह
मेरे दोस्तों खुद से पूछ कर बताना मुझे
बहुत ही बढ़िया... speechless...
ReplyDeleteक्या हम एक शापित समाज का हिस्सा नहीं है, एक ऐसे समाज का जिसमे अंतरात्मा के मुह को सिळ दिया गया है | जहां हम दो बुरे लोगो में से एक कम बुरे को अच्छा मान लेते हैं | हमारी तलाश बुरे की और है अच्छे की और नहीं | भगवान भरोसे जिन्दा है यहाँ आदमी और माने बैठा है उसी से दुनिया चल रही है | हम लोगो की हालत उस कुत्ते की तरह है जो बैलगाडी के नीचे चलता हुआ सोचता है की बैलगाडी को वही खीच रहा है फिर कौन तो दुनिया को बदलने का ख्वाब देखे और कौन खुद को बदलने का | अच्छा लिखते रहिये शायद कुछ लोगो को झकझोर पाए आप |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर |
ReplyDeleteलेकिन आज आपकी रचना को पढ़ते हुए मुझे एक विचार आया | जिस तरह से आप समाज के नकारात्मक और दुःख से परिपूर्ण रूप को बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत करते हैं, उसी तरह कभी परिवर्तन के तौर पर कुछ खुशनुमा सा लिखने का भी प्रयत्न करें |
आपकी अगली प्रस्तुति के इंतज़ार में.
बहुत शानदार लिखा है आपने.
ReplyDelete--
वात्स्यायन गली