अंतर्मन - मानव का वो साथी है जो उसको हमेशा अहसास दिलाता है की मानव भगवान का अंश है सच्चे अर्थो में हमेशा साथ खड़ा रहने वाला दोस्त अंतर्मन ही तो है जो हमेशा हमे कुछ भी गलत करने से रोकता है किसी भी काम से पहले मन कहता है रुक, सोच ले और हर गलत कदम पे वो अहसास कराता है कि भगवान देख रहा है लेकिन, आदमी अंतर्मन की आवाज को अनसुना कर आगे बढ़ता है; सभी गलत काम करता है, लोगो को ठगता है और फिर कहता है कि अच्छा हुआ जो ये काम कर लिया, कितना पैसा कमा लिया (जबकि उस समय भी अंतर्मन कहीं डर रहा होता है)

जब यह योजना बनी की अंग्रेजी ब्लॉग में रोसेन लगातार कुछ लिख रही है और मैं पंचतत्व में हिंदी ब्लॉग की कमी को पूरा करूँ तो मुझे लगा कि अंतर्मन की आवाज से बेहतर और क्या होगा लिखने को - जिसे हम सब सामने नहीं आने देना चाहते कोशिश है एक छोटी सी अंतर्मन की दशा बताने की - अगर लगे कि मैं उस आवाज को सुन पाया हूँ तो स्वागत करना; अन्यथा, एक दोस्त की तरह मुझसे इस बात की मंत्रणा करना कि क्यों मैं चाह कर भी अंतर्मन की आवाज़ सुन नहीं पाया

Monday, December 27, 2010

समाज के अन्धविश्वास

कल मेरे पड़ोस में हमारी एक भाभी अपने बड़े बेटे पर गुस्सा कर रही थी की क्यूँ उसने छोटे बेटे को लांघ दिया और अब छोटे वाले की लम्बाई नहीं बढ़ेगी और छोटे वाला रो रहा था की अब उसकी लम्बाई नहीं बढ़ेगी | भाभी ने बड़े वाले बेटे को जबरदस्ती दोबारा छोटे बेटे के ऊपर से जाने को कहा जिससे पहली बार लाँघने का प्रभाव खतम हो जाए और इस् छीना झपटी में बड़ा बेटा इतनी जोर से गिरा की उसको सर में तीन टांके लगाने पड़े | मुझे इस् बात पर इतनी निराशा हुई की कैसे हम पढ़ लिखने के बाद भी ना जाने किन बंधनों में बंधे हैं | सोचने पर लगा की कैसे ये चीज़े समाज की भलाई के लिए बनाई गयी थी और कैसे ये अन्धविश्वास बन गयी | हमारे समाज के वो लोग जिन्होंने इतनी छोटी चीजों को कितनी गहरे से सोचा और नियम बनाये बच्चो के लिए , बडो के लिए लेकिन हमने उनको कैसे अपने अन्धविश्वास बना लिए बिना ये सोचे की वो क्यूँ बनाये गए थे | सबसे पहले “लाँघने पर छोटा रह जाना” इसलिए बनाया गया था ताकि बच्चे खेल खेल में इसलिए एक दुसरे को न लांघे क्यूंकि अगर वो एक दुसरे के ऊपर गिर जायेंगे तो बहुत ज्यादा चोट खा बैठेंगे और अगर बच्चा बहुत छोटा है तो खतरा और भी ज्यादा | एक और मैं सुनता आया हु की “खाली कैंची नहीं चलानी चाहिए” वरना झगडा हो जाता है ; इसका कारण यह रहा होगा की ऐसा करने से कैंची के हाथ में लगने का डर होता है और बच्चे ऐसा न करे | एक तो हम सबके घरों में भी सब मानते है की “शाम के समय झाड़ू नहीं लगानी चाहिए “इसका कारण यह था की पहले बिजली नहीं होती थी, घर खुले होते थे और रात को अँधेरे के कारण यह दिखाई नहीं देता था की कहीं कोई सांप वगैरह छुप कर तो नहीं बैठा | इसी तरह “सुबह उठते ही झाड़ू लगनी चाहिए” इसका कारण यही था की अगर रात में कोई जानवर , कीड़ा मकोड़ा छुप कर बैठ गया है तो वो दिख जाए | पेडो और नदियों की पूजा का नियम इसलिए बनाया गया ताकि लोग इनको गन्दा न करे और पेडो की रक्षा करे लेकिन बड अमावस को हमारे पड़ोस में लगा पेङ लोग पूरी तरह उजाड़ देते हैं की उनकी पत्तियों से पूजा करेंगे | घर में वास्तविक अर्थ क्या था इन चीजों का वो कहीं खो गया है | भगवान महावीर ने नियम बनाया की सूरज ढलने के बाद खाना न खाए क्यूंकि उस समय रौशनी नहीं होती थी और पूर्ण शाकाहारी होने के कारण इस् बात की सम्भावनाये थी की अँधेरे में खाना खाने के कारण कुछ कीड़े खाने के साथ न दिखाई दे, लेकिन उस चीज़ को नियम बना लिया गया वहाँ भी जहां कीडो की सम्भावना ही नहीं है और रौशनी भी भरपूर है | इसी तरह मेरे एक मुस्लिम मित्र ने बताया की उनके यहाँ कुरान के अनुसार बकरीद पर वही लोग कुर्बानी कर सकते हो जिनकी माली हालत अच्छी हो और जिनके पास एक निश्चित मात्र में सोना और चांदी हो, लेकिन लोग कर्ज लेकर कुर्बानी कर रहे हैं | क्या आपको नहीं लगता की किन कारणों से हमने नियम बनाये लेकिन उनका क्या बना लिया हमने | मेरा आशय किसी की आस्था को ठेस पहुँचाना कदापि नहीं है, लेकिन में चाहता हू हम लोग सोचे की ऐसी चीज़े क्यूँ समाज में शुरू हो गई जो किन्ही मायनों में अर्थहीन दिखाई देती हैं | आप भी देख आपके घरों में भी ऐसे कौन से नियम होंगे जिनको बिना सोचे हम मानते रहते हैं और उनका क्या कारण था इसको हम बिलकुल भूल बैठे हैं | अगर आपको लगता है नहीं इनका कोई और प्रोयोजन है तो कृपया मेरी जिज्ञासा को अवश्य अपने बहुमूल्य विचारो से दूर करे |

4 comments:

  1. bahut hi gahri soch ke sath aapne vishleshan kiya hai aur mujhe aapke tark bhi bilkul uchit lage. dhanyawad is vishay par likhne ke liye.

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  2. ये तो हजारो सालो से लोगो के मन में बसी बातें हैं | किन्तु उन लोगो का क्या करे जो नित नयी बातो को जन्म दे रहे हैं | इस् बात का शायद बहुत कम लोगो को पता होगा की वास्तु शास्त्र के नाम पे जो इतनी बड़ी इंडस्ट्री खड़ी कर ली गयी है उसका भारतीय वेदों या इतिहास से कोई लेना देना नहीं है | भारतीय वेदों तथा उपनिषदों के अनुसार वास्तु का मतलब सिर्फ इस् बात से है की मकान की दिशा पूर्व में होनी चाहिए , मकान में रौशनी और हवा का प्रबंध होना चाहिए| मकान का मुख्या भाग खुले भाग से ऊँचा होना चाहिए | लेकिन आप देखिये कितना बड़ा प्रपंच रच लिया गया है और लोग कैसे हंसी हंसी इन बातो का पालन कर रहे हैं | हमारे टीवी चैनल, हमारा मीडिया हर कोई इन चीजों से पैसा कमाने में लगा है | जिस मकान में रहते रहते पूरी तरक्की की वास्तु के नाम पर उस पूरे मकान का नक्शा बदलने में लगे हैं |

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  3. इस् रचना पर एक टिपण्णी मिली की ऐसा इस् लिए होता है की समाज के लिए जो नियम कायदे किसी काल विशेश में बनाए जाते हैं उस काल या उन कारणों के खतम हो जाने के बाद भी वो प्रथाए समाज में चलती रहती है | मुझे ये वाकई लगता है की इन सब चीजों के पीछे यही कारण है लेकिन वास्तु जैसे समाज के दोषों का क्या हो वैसे इसको सही उच्चारण करते हैं वास्तुदोष

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  4. वास्तु दोष सही लिखा गया ... समाज के लिए इसका अन्धो की तरह विश्वास करना एक दोष ही है समाज का | हम जितना तरक्की कर रहे हैं उतना ही गर्त भी में जा रहे है शायद संतुलन के लिए दोनों चीज़े जरुरी होती हो |कल टीवी पर एक कार्यक्रम में एक औरत मोमबत्ती की लौ में देखकर भविष्य फल बता रही थी और एक मैडम आपके काफी पीने के बाद बची कोफ्फी के कप में सूखने पर उसकी आकृतियों को देख कर आपका भविष्य बताते हैं | जैसे जीवन न हो गया कार्टून फिल्म हो गयी |

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