
अब मुझे यह भी लगने लगा है की मेरा ही मानसिक संतुलन ठीक नहीं क्यूंकि मैं चाह कर भी, हज़ार प्रयत्न करने के बाद भी वैसे सोच नहीं पाता जबकि मुझे लगता है की अगर किसी आदमी को समझना चाहता हूँ तो उसकी तरह सोचने का प्रयत्न करु | मैं अब बहुत सी बाते समझ नहीं पाता शायद मैं अवसाद से ग्रस्त हूँ
जैसे मुझे समझ नहीं आता की कोई इतना बेशर्म कैसे हो सकता है जो ये कह दे की हम पकिस्तान से अछे हैं जहां रोज धमाके होते हैं या फिर यही की धमाके रोके ही नहीं जा सकते जैसे अमेरिका के बारे में हमे पता ही नहीं और वहाँ भी रोज बम फटते हो |

मुझे और भी बाते समझ नहीं आती जैसे गंगा को बचाने को चलाई जाने वाली मुहीम उन लोगो को क्यूँ नहीं सोप दी जाती जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इसी के लिए लगा दी | हर शहर में छोटे छोटे ग्रुप या जलपुरुष राजेंद्र सिंघजी जैसे लोगो को क्यूँ नहीं उन कार्यों के लिए नियुक्त किया जाता जो अकेले लगे हैं बरसो से |
मुझे ये भी समझ नहीं आता की क्यूँ हम उग्रवादियों को अपने देश में घुसने देते हैं और फिर उनसे लड़ते हैं ये तो उसी तरह हो गया की घर के बाहर से चूहों को अंदर आने दो और फिर उन्हें घर में खोजते रहो तब तक जब तक वो कोई नुक्सान ना कर दे | क्यूँ नहीं बोर्डर की सुरक्षा में उनमे से आधे लोग और लगा दिए जाते जिनको देश के अंदर सुरक्षा करनी है | कितना अजीब है घर के हर कमरे में ताला लगा के रखो और मुख्य द्वार खुला रहने दो |
मुझे ये भी समझ नहीं आता की तरह तरह के भ्रष्ट्राचार में फसे नेता कैसे हर बार चुनाव जीत कर फिर से राज करने लगते हैं, कैसे भ्रष्ट्राचार के आरोप में नेता के जेल जाते समय लोग उनके लिए नारे लगाते हैं की संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ है | मुझे बहुत सी बाते समझ नहीं आती |
मुझे समझ नहीं आता की सड़क पर हुई हर मौत के लिए कौन से लोग सरकारी बसों को तोड़ते हैं और फिर मुआवजा लेकर आराम से घर जाकर सोते हैं |
मुझे समझ नहीं आता की कौन से लोग शहर की सबसे व्यस्त सडको पर जागरण करने के लिए इकठ्ठा हो जाते हैं और कौन से लोग उन्हें इसकी परमिशन दे देते हैं |
अच्छा है बहुत से लोग अवसाद ग्रस्त नहीं हैं, अच्छा है बहुत से लोगो को पुरानी बाते याद नहीं रहती| अच्छा है कल से मुंबई फिर से चलने लगेगी | अच्छा है देश के बहुत से लोगो की संवेदनाए मर गयी है | अच्छा है बहुत से लोग यही सोचते हैं की सवा अरब लोगो में सों पचास का मर जाना क्या मायने रखता है |